
कुंभ मेला समाप्त होते ही वह विशाल भूमि, जहां हाल ही में लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा था, अब वीरान और सुनसान नज़र आने लगी। जहाँ कल तक भक्तों के जयकारों की गूंज थी, वहाँ अब केवल बहती हवा की सरसराहट और बचे-खुचे तंबुओं की खड़खड़ाहट सुनाई दे रही थी।
गंगा के तट पर लगे अस्थायी शिविर हटाए जा रहे थे, और सफाईकर्मी मेले के बाद फैली गंदगी को समेटने में जुटे थे। कई संत-महात्मा और श्रद्धालु पहले ही अपने-अपने गंतव्य को लौट चुके थे, और जो कुछ लोग बचे थे, वे भी धीरे-धीरे प्रस्थान की तैयारी कर रहे थे।
जहाँ कुछ दिन पहले तक साधु-संतों की प्रवचन ध्वनि गूंज रही थी, अब वहां केवल सन्नाटा पसरा था। मेला क्षेत्र में जगह-जगह पड़े फूलों, चढ़ावे और कुछ टूटे-फूटे सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि हाल ही में यहां भव्य आयोजन हुआ था।
स्थानीय दुकानदार भी अपनी दुकानें समेट रहे थे। कुछ व्यापारी संतुष्ट दिखे, तो कुछ निराश, लेकिन सभी के मन में अगले कुंभ मेले के लिए नई उम्मीदें थीं। प्रशासन की टीमें सफाई और व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में लगी थीं ताकि मेला स्थल को फिर से अपनी मूल स्थिति में लाया जा सके।
कुंभ का समापन भले ही हो गया हो, लेकिन श्रद्धालुओं के दिलों में इसकी यादें हमेशा जीवित रहेंगी। अगली बार जब कुंभ का आयोजन होगा, तब फिर से यही स्थल भक्तों से भर जाएगा और एक बार फिर आध्यात्मिक उल्लास का संगम देखने को मिलेगा।